उस इक गागर से तुझ को फिर बार बार नहलाऊंगी मैं
अभिषेक करूँगी तेरा मेरा चंदन तिलक लगाऊंगी मैं
नाम खुद रख लेना अपना बतला क्या कहलाऊंगी मैं
मेरी बात को झूठ कहा तो तेरी कसमें खाऊँगी मैं
कसं झूठ जो निकली,तेरी बाहों में मर जायूँगी मैं
इसी जनम में अपना मुझको ना दुनिया में फिर आयोँगी मैं
कभी ना सिलवट आने देना चादर सी बिछ जायूँगी मैं
आधा भोग नही लगता है सारा प्यार लुटाऊँगी मैं
प्रेम का पूरा सागर तेरी गागर में भर लाऊंगी
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