Sunday, January 23, 2011

कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें

मैं जब छोटी थी ना
तो अक्सर .......बड़े शौक से
कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें
बनाती रहती थी
घर की दीवारों पर
और माँ..... हमेशा की तरह...... डांट देती थी
"मत कर बेटा ,दीवारें..... खराब हो जाएँगी!!"
मैं अब....... समझदार हो गयी हूँ |

पर ऐ खुदा
तू क्या अभी तक नादान है
जो आड़ी-तिरछी रेखाएं
गढ़ता रहता है
हम सब की हथेलिओं पर
कभी कटी कभी पूरी
कभी आधी-अधूरी
क्या तेरी माँ........ डांटती नहीं तुझे
"मत कर बेटा,जिंदगियां .... ख़राब हो जाएँगी.....!!

No comments:

Post a Comment