तो अक्सर .......बड़े शौक से
कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें
बनाती रहती थी
घर की दीवारों पर
और माँ..... हमेशा की तरह...... डांट देती थी
"मत कर बेटा ,दीवारें..... खराब हो जाएँगी!!"
मैं अब....... समझदार हो गयी हूँ |
पर ऐ खुदा
तू क्या अभी तक नादान है
जो आड़ी-तिरछी रेखाएं
गढ़ता रहता है
हम सब की हथेलिओं पर
कभी कटी कभी पूरी
कभी आधी-अधूरी
क्या तेरी माँ........ डांटती नहीं तुझे
"मत कर बेटा,जिंदगियां .... ख़राब हो जाएँगी.....!!
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