Wednesday, December 8, 2010

"खुद ज़ख्म देकर पूछते हैं हाल कैसा है

"खुद ज़ख्म देकर पूछते हैं हाल कैसा है
मरहम भी लगाते हैं तो
खंजर की नोक से "...
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मोहोब्बत मुक़द्दर है कोई ख्वाब नहीं ,
ये वो गुनाह है जिसमें
सब कामयाब नहीं,

जिन्हें पनाह मिली उन्हें उँगलियों पे गिन् लो,
और जो
बर्बाद हुए उनका हिसाब नहीं...
*****

ये और बात है के तेरी बंदगी नहीं होती ..
लेकिन तुझे भूल कर बसर ज़िन्दगी नही
होती ..
ये कह दो हर एक फर्द -ऐ -शहर को ..
किसी को चाहते रहना आवारगी नहीं
होती
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सामने है जो उसे लोग बुरा कहते है,
जिसको देखा ही नही उसको खुदा कहते
है,
चन्द मासूम से पत्तो का लहू है ,
जिसको महबूब के हाथो की हिना
कहते है !!
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रोते हैं दिल के ज़खम तो हँसता नही कोई,
इतना तो फ़ायदा मुझे
तनहाइयों से है......!

3 comments:

  1. शानदार शेर। मजा आ गया।

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  2. बेहद मनमोहक काव्य रचना......ह्रदय को स्पर्श करती..... मेरा ब्लागःः"काव्य कल्पना" आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद.....

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| आभार|

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